चाँद की तरुणाई
चांदनी रात में चाँद की तरुणाई
ले रही थी अंगड़ाई
देख उसकी तारुण्यागम छवि को
निशा भी थी स्तब्ध और
सितारे भी होकर बेसुध
इस अलौकिक क्षण को करते थे आनंदित
मंद-मंद पवन भी थी विस्मित
देखकर भव्यता शशि के कौमार्य की
रात्रि की नीरवता भी
हो गई अचेत देखकर विहंगम पल को
चिर-निद्रा में पड़ा वायु-मंडल भी
शनैः शनिः तिमिरता में खो गया
ऐसा प्रकृतिबाह्य दृश्य का अवलोकन कर
रात्रि में विचरते सभी प्राणियों को जैसे
एक नूतन अनुभव हुआ हो
किसी अलौकिक तत्वज्ञान का
था ब्योम भी आतुर
अपनी पिपासा को तृप्त करने के लिए
ऐसा आभास होने लगा की जैसे
आकाशगंगा में जीवनकाल थम-सा गया
कुछ क्षणों के लिए
झिलमिलाते सितारे जैसे
वैकुण्ठ से पुष्प-वर्षा कर रहे हों, और
मानो सारा वातावरण
मदहोशी के आगोश में सिमट गया हो
कितना जीवंत था चंदा का तारुण्य
कितनी आलोकित-कितनी अलौकिक
थी चाँद की तरुणाई की भव्यता
(किशन नेगी)