देखो ऩजर उठाके तेरा हबीब आया
तुझसे दूर जाके और भी तेरे करीब आया
अमीरी के तराजू मे जिसे ना तौल पाई दुनिया
वहीं दिल का धनी पैसों का मगर गरीब आया
कहाँ बेकार मे नसीब तुम तलाशती फिरती हो
चलके ख़ुद-ब-ख़ुद तेरे पास तेरा नसीब आया
थे हुवे शिकार हम तुम किसी गलतफहमी का
फिर से नज़दीक आने का नया तरकीब आया
मग़र तू मेरी कौन है और हूँ तेरा मै भी कौन
जूबाँ पे जालिमों के सवाल भी ये अज़ीब आया
@सत्येन्द्र गोविन्द ( नरकटियागंज ,बिहार )
Acchi कविता हैं । हम तो अपनी यादों में ही खो गये ।
धन्यवाद रूपेश उपाध्याय जी
Heart touching lines. I like it.
thanks upadhyay g i always try to write better than earlier and its all your love which raise my spirit
Bahut acha hai..
. Awesome jiiii