मेरे अंतः की आशायें
मेरे अंतः की आशायें हरदम किलकारी भरती हैं। मैं धूल बनूँ या फूल बनूँ बिखराव तपन-सी रहती है सुनसान अंधेरे पथ पर भी कुछ घड़कन दिल की बढ़ती है। पर आशा की लहरें तब भी चंचल मन में आ बसती हैं। मेरे अंतः की आशायें हरदम किलकारी भरती हैं। तुमसे हटकर दूर चलूँ तो सफर विकट-सा बन जाता है और अकेला निकल पडूँ तो पथ अनजाना बन जाता है। पर इन घड़ियों में भी आशा तेरा रूप लिये रहती है। मेरे अंतः की आशायें हरदम किलकारी भरती हैं। मैं तट पर जा लहरें गिनता भूल गया था साँसें गिनना क्रोध Continue reading मेरे अंतः की आशायें